

Garbha Sanskar puja गृहस्थ आश्रम अर्थात विवाह के उपरांत संतानोपत्ति करना प्रत्येक दंपति का कर्तव्य है। जहां मां बनकर एक स्त्री की पूर्णता होती है, वहीं पुरुष के लिए संतान पितृ-ऋण से मुक्ति प्रदान करने वाली होती है। षोडश संस्कारों के क्रम में 'गर्भाधान' को प्रथम संस्कार माना गया है। आज आधुनिकीरण की अंधी दौड़ व पाश्चात्य संस्कृति के प्रवाह में हमने 'गर्भाधान' संस्कार की बुरी तरह उपेक्षा की है। वर्तमान समय में 'गर्भाधान' को एक संस्कार की तरह करना लुप्त हो गया है जिसके गंभीर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। बिना उचित रीति व श्रेष्ठ मुहूर्त के 'गर्भाधान' करना निकृष्ट व रोगी संतान के जन्म का कारण बनता है। एक स्वस्थ, आज्ञाकारी, चरित्रवान संतान ईश्वर के वरदान के सदृश होती है किंतु इस प्रकार की संतान तभी उत्पन्न हो सकती है, जब 'गर्भाधान' उचित रीति व शास्त्रों के बताए नियमानुसार किया जाए। 'गर्भाधान' से पूर्व संकल्प व प्रार्थना करें- 'गर्भाधान' वाले दिन प्रात:काल गणेशजी का विधिवत पूजन व नांदी श्राद्ध इत्यादि करना चाहिए। अपने कुलदेवता व पूर्वजों का आशीर्वाद लेना चाहिए। 'गर्भाधान' के समय गर्भाधान से पूर्व संकल्प व प्रार्थना करनी चाहिए एवं श्रेष्ठ आत्मा का आवाहन कर निमंत्रित करना चाहिए। 'गर्भाधान' के समय दंपति की भावदशा एवं वातावरण जितना परिशुद्ध होगा, श्रेष्ठ आत्मा के गर्भप्रवेश की संभावना उतनी ही बलवती होगी।
We hate spam too.